सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को दृष्टिगत ध्यान देने की जरूरत है। ।आप आज वर्तमान को ना देखें भविष्य की चिंता करें ।जिस प्रकार नदियों और पहाड़ों को खनन के द्वारा खोखला किया जा रहा है । हमें भूजल संरक्षण के लिए रूपरेखा बनाने के लिए सरकार को बाध्य करना चाहिए और इसके विरुद्ध याचिकाएं लगनी चाहिए क्योंकि यह “जल जंगल जमीन “हमारी विरासत है ।इसका संरक्षण करना हमारा दायित्व बनता है। सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय की आज 100 मी पहाड़ी क्योंकि 328 फीट लगभग होती है जो उसका मानक तय किए गए हैं कि उसके ऊपर की ऊंचाई पर खनन होगा और उसके नीचे की पहाड़ियों का पर खनन पर खुली छूट दी जा रही है ।उस पर विचार करना चाहिए क्योंकि इसका असर राजस्थान हरियाणा गुजरात और सीमा से लगे और प्रदेश एवं राजधानी दिल्ली भी चपेट में आ रही है। हरियाणा सरकार के पंजाब भूमि संरक्षण अधिनियम 1900 से अरावली को खतरा मानकर समय-समय पर जनता अपना आक्रोश सड़क पर दिखाती रहती है और वहां से याचिकाएं भी लगी है ।अरावली पहाड़ इस समय सुर्खियों में इसलिए है कि सुप्रीम कोर्ट ने जो ऐतिहासिक फैसला दिया है ।इससे जनमानस खासतौर ग्रामीणों में बहुत आक्रोश है। ऐसे में छोटे छोटे पहाड़ छोटी-छोटी झाड़ियां जो ढलान पर होती है वहभी प्रभावित होती है। उनका पानी का बहाव भी प्रभावित होता है और वह ढलान वाली पहाड़ियां जो की हमारे वन्य जीव का भरण पोषण करती है । वन संरक्षण और जल संरक्षण बचाने का प्रयास करना चाहिए नहीं तो सब बर्बाद हो जाएगा ।
पर्यावरण विद् कई सामाजिक कार्यकर्ता इस निर्णय से काफी चिंतित है ।हमारे यहां पहाड़ों के संरक्षण के लिए चिपको आंदोलन नर्मदा बचाओ पानी बचाओ जाने कितने अभियान चल चुके हैं। उसका कोई भी प्रभाव नहीं पड़ा है। हमारे पहाड़ों का संरक्षण कमजोर होगा और इसका नुकसान भविष्य में होने की प्रबल संभावनाएं है।बारिश का पानी का बहाव नियंत्रण में नहीं रहेगा ।ऐसे में रेगिस्तान बनने की संभावना बनी रहेगी। पर्यावरण विद् और चिन्तनविद लोगों को कहना है कि इस पर सरकार को त्वरित कार्यवाही करनी चाहिए और सरकार को अपना पक्ष सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत करना चाहिए। हमें इस तरह रेगिस्तान बनने से रोकने के लिए महत्वपूर्ण योजना बनाने की जरूरत है।
हमारे वन्य जीव और किसान इससे प्रभावित होंगे।
सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध है कि सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों से समान रूप से एक तर्कसंगत निर्देश देना चाहिए जिससे सभी का हित हो पूरी पहाड़ी क्षेत्रों को शामिल करके योजना बनाई जाए कि हमारे “जल जंगल जमीन “का संरक्षण हो सके।
विष्णु तिवारी
संपादक उत्कर्ष ज्योति

