उत्तराखंड हाईकोर्ट ने शुक्रवार को एक ऐतिहासिक निर्णय में नगर निकाय और ग्राम पंचायत दोनों की मतदाता सूचियों में दर्ज नाम वाले मतदाताओं और प्रत्याशियों के चुनाव लड़ने और मतदान करने पर रोक लगा दी है। राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा इस संबंध में 6 जुलाई को जारी नोटिफिकेशन को न्यायालय ने असंवैधानिक करार देते हुए निरस्त कर दिया है।
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी. नरेंद्र और न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ ने इस मामले में गढ़वाल निवासी शक्ति सिंह बर्त्वाल द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किया। याचिका में कहा गया था कि राज्य के 12 जिलों में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव लड़ रहे कई प्रत्याशियों के नाम एक साथ नगर निकाय और ग्राम पंचायत दोनों की मतदाता सूचियों में दर्ज हैं, जो न केवल पंचायती राज अधिनियम की धारा 9(6) व 9(7) का उल्लंघन है, बल्कि यह गंभीर चुनावी अनियमितता भी है।
दोहरे नामांकन पर उठे सवाल, कोर्ट ने जताई सख्त आपत्ति
याचिका में यह भी बताया गया कि दोहरी मतदाता सूची में नाम होने के चलते कुछ प्रत्याशियों के नामांकन निरस्त कर दिए गए, जबकि कुछ को स्वीकृति दे दी गई, जिससे एकरूपता का अभाव साफ झलकता है। याचिकाकर्ता ने राज्य निर्वाचन आयोग के मुख्य निर्वाचन आयुक्त को 7 और 8 जुलाई को पत्र लिखकर इस गंभीर विषय पर स्पष्ट निर्देश देने का अनुरोध किया था, लेकिन जवाब से असंतुष्ट होकर उन्होंने न्यायालय की शरण ली।
हाईकोर्ट का स्पष्ट रुख – पंचायत चुनाव के मौजूदा चरण में नहीं होगा हस्तक्षेप, लेकिन भविष्य में प्रभावी रहेगा आदेश
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वर्तमान में चल रही पंचायत चुनाव की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है, अतः मौजूदा चुनाव में कोई हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा, लेकिन भविष्य में इस आदेश का पालन अनिवार्य होगा।
आयोग की ओर से उपस्थित अधिवक्ता संजय भट्ट ने बताया कि अदालत ने चुनाव आयोग के 6 जुलाई के नोटिफिकेशन पर रोक लगा दी है, और अब आयोग आदेश की प्रति मिलने के बाद विधिक पहलुओं पर विचार करेगा।
बड़ा सवाल – कैसे हो रही थी दोहरे मतदाता सूची में शामिल प्रत्याशियों की स्वीकृति?
यह फैसला उत्तराखंड की चुनावी व्यवस्था में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हो सकता है। याचिका में यह भी कहा गया कि देश में किसी भी राज्य में एक व्यक्ति का नाम दो अलग-अलग मतदाता सूचियों में होना अपराध की श्रेणी में आता है, ऐसे में उत्तराखंड में इस नियम को दरकिनार कर निर्वाचन स्वीकृति कैसे दी गई, यह गंभीर चिंता का विषय है।