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Devbhumi Discover > उत्तराखण्ड > उत्तराखण्ड के लिए व्यापक डिजास्टर मैनेजमेंट पॉलिसी बनाई जाए
उत्तराखण्ड

उत्तराखण्ड के लिए व्यापक डिजास्टर मैनेजमेंट पॉलिसी बनाई जाए

Devbhumi Discover
Last updated: November 13, 2025 11:49 am
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7 Min Read
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  1. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के सदस्य डॉ. डी.के. असवाल ने यूएसडीएमए मुख्यालय का किया निरीक्षण, कहा
  2. उत्तराखण्ड के लिए व्यापक डिजास्टर मैनेजमेंट पॉलिसी बनाई जाए

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) के सदस्य डॉ. डी.के. असवाल ने बुधवार को उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (यूएसडीएमए) स्थित राज्य आपातकालीन परिचालन केंद्र का दौरा कर राज्य में आपदा प्रबंधन से संबंधित गतिविधियों की जानकारी ली। उन्होंने इस अवसर पर विभागीय अधिकारियों के साथ विस्तृत बैठक करते हुए उत्तराखण्ड की भौगोलिक, पर्यावरणीय तथा आपदा को लेकर संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए राज्य की समग्र आपदा प्रबंधन नीति तैयार करने के निर्देश दिए। इस दौरान उन्होंने यूएसडीएमए द्वारा आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में किए जा रहे कार्यों को सराहा। उन्होंने कहा कि उत्तराखण्ड में आपदा प्रबंधन विभाग द्वारा जिस प्रकार आपदाओं के दौरान त्वरित गति से राहत और बचाव कार्य किए जाते हैं, वह प्रशंसनीय है।

डॉ. असवाल ने कहा कि उत्तराखंड जैसे पर्वतीय राज्य में आपदा प्रबंधन और विकास के बीच संतुलन बनाना अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने कहा कि राज्य को ऐसी दूरदर्शी नीति की आवश्यकता है जो विकास के साथ-साथ आपदा जोखिम न्यूनीकरण को भी समान रूप से प्राथमिकता दे। उन्होंने यह भी कहा कि यूएसडीएमए द्वारा तैयार की जाने वाली नीति में आपदा सुरक्षित उत्तराखंड की परिकल्पना को ठोस और क्रियान्वयन योग्य रूप में प्रस्तुत किया जाए। इस नीति में वैज्ञानिक आंकड़ों पर आधारित योजनाएं, जोखिम मानचित्रण, संवेदनशील क्षेत्रों में निर्माण नियंत्रण, पारंपरिक ज्ञान का समावेश, तथा तकनीकी नवाचारों का संतुलित उपयोग सुनिश्चित किया जाए।
उन्होंने कहा कि यूएसडीएमए को एक सेंटर ऑफ एक्सीलेंस के रूप में विकसित करने की आवश्यकता है, जो आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में अनुसंधान, नवाचार और क्षमता निर्माण का अग्रणी संस्थान बने, इसके लिए एनडीएमए हर संभव सहयोग प्रदान करेगा। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि यूएसडीएमए को एक सुदृढ़ और व्यापक डाटा सेंटर विकसित करना चाहिए, जहां विभिन्न विभागों, एजेंसियों, शैक्षणिक संस्थानों और अनुसंधान संगठनों से प्राप्त सभी आंकड़े  एकीकृत रूप से संगृहीत हों। यह डाटा सेंटर न केवल रीयल-टाइम जानकारी प्रदान करे, बल्कि विभिन्न आपदा जोखिमों का विश्लेषण कर वैज्ञानिक नीति निर्माण में भी सहयोग करे।
डॉ. असवाल ने कहा कि राज्य में स्थापित सेंसरों और सायरनों की संख्या में वृद्धि की जाए ताकि भूकंप, अतिवृष्टि, हिमस्खलन, भूस्खलन और ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड जैसी आपदाओं की प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली को और अधिक सुदृढ़ बनाया जा सके। उन्होंने निर्देश दिया कि सभी सेंसरों की स्थिति, कार्यप्रणाली और अनुरक्षण की एक समेकित व्यवस्था तैयार की जाए ताकि उनसे प्राप्त डाटा सटीक और समयबद्ध हो। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि सेंसरों की आवश्यकता का आकलन कर एक विस्तृत प्रस्ताव तैयार किया जाए और एनडीएमए को भेजा जाए, जिससे राज्यभर में तकनीकी निगरानी ढांचे को व्यवस्थित रूप से विकसित किया जा सके।
उन्होंने कहा कि आपदा प्रबंधन केवल संकट के समय का कार्य नहीं है, बल्कि यह निरंतर, सालभर चलने वाली प्रक्रिया है जिसके लिए मजबूत संस्थागत ढांचे और सक्रिय भागीदारी की आवश्यकता है। डॉ. असवाल ने राज्य में पारंपरिक वास्तुकला, स्थानीय निर्माण तकनीकों और स्वदेशी ज्ञान को संरक्षण एवं मान्यता देने पर भी बल दिया। उन्होंने कहा कि पारंपरिक ज्ञान हमारी सांस्कृतिक और पर्यावरणीय धरोहर है, जिसे आधुनिक तकनीक के साथ जोड़कर हम अधिक सुरक्षित और टिकाऊ निर्माण कर सकते हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि ऐसे मॉडल गांव विकसित किए जाएं जो आपदा की दृष्टि से पूर्णतः सुरक्षित हों, ताकि उन्हें अन्य क्षेत्रों के लिए आदर्श के रूप में प्रस्तुत किया जा सके।
उन्होंने संवेदनशील भौगोलिक स्थलों पर किसी भी प्रकार के अनियंत्रित निर्माण पर रोक लगाने की आवश्यकता दोहराई और कहा कि राज्य सरकार को भवन निर्माण से संबंधित एक दीर्घकालिक नीति तैयार करनी चाहिए, जिसमें निर्माण के मानक, सामग्री चयन, स्थल निर्धारण और डिज़ाइन आपदा सुरक्षा के अनुरूप हों। उन्होंने कहा कि हमारे भवन और संरचनाएं प्रकृति के अनुकूल होंगी, तभी राज्य का भविष्य सुरक्षित होगा।
उन्होंने यह भी कहा कि उत्तराखंड को जल, जंगल और जमीन जैसी अनमोल प्राकृतिक धरोहरें प्राप्त हैं, जिनका संरक्षण हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है। इन संसाधनों की रक्षा के लिए दीर्घकालिक रणनीति और ठोस नीति निर्माण समय की आवश्यकता है। उन्होंने इस बात पर भी बल दिया कि बेहतर आपदा प्रबंधन के लिए सरकार, शासन, वैज्ञानिक संस्थान और समुदाय के बीच घनिष्ठ समन्वय स्थापित किया जाना चाहिए।
बैठक में सचिव आपदा प्रबंधन एवं पुनर्वास श्री विनोद कुमार सुमन ने डॉ. असवाल को यूएसडीएमए द्वारा संचालित विभिन्न गतिविधियों की विस्तृत जानकारी दी तथा इस वर्ष धाराली, थराली सहित अन्य क्षेत्रों में घटित आपदाओं, हुए नुकसान, राहत एवं पुनर्वास कार्यों की जानकारी साझा की।
इस अवसर पर अपर मुख्य कार्यकारी अधिकारी प्रशासन-श्री आनंद स्वरूप, अपर मुख्य कार्यकारी अधिकारी-क्रियान्वयन डीआईजी श्री राजकुमार नेगी, संयुक्त मुख्य कार्यकारी अधिकारी मो0 ओबैदुल्लाह अंसारी, डॉ. शांतनु सरकार, श्री एसके बिरला, डॉ. मोहित पूनिया के साथ ही यूएसडीएमए, यूएलएमएमसी, यू-प्रीपेयर के विशेषज्ञ उपस्थित थे।
सचिव आपदा प्रबंधन एवं पुनर्वास श्री विनोद कुमार सुमन ने राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) के सदस्य डॉ. डी.के. असवाल से निम्नलिखित पर एनडीएमए के स्तर से सहयोग मांगा।
राज्य को विशेष आर्थिक सहायता पैकेज।
एसडीआरएफ के मानकों में शिथिलीकरण।
एसडीएमएफ निधि में वृद्धि।
हिमस्खलन/भूस्खलन पूर्वानुमान मॉडल की स्थापना।
ग्लेशियर झीलों की सतत निगरानी एवं नयूनीकरण उपाय हेतु सहयोग।
आपदा से बेघर हुए व्यक्तियों के पुनर्वास हेतु वन भूमि हस्तांतरण नियम में शिथिलीकरण।

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