प्रदेश में बड़े कार्यक्रमों और आयोजनों में बाहरी कंपनियों को वरीयता देने के विरोध में दून ट्रैवल ऑनर्स एसोसिएशन ने नाराज़गी जताई है। आरोप है कि प्रदेश सरकार की नीतियों के बावजूद हर बार राज्य के उद्यमियों और सेवा प्रदाताओं को नज़रअंदाज़ किया जा रहा है, जबकि बाहरी कंपनियों को करोड़ों रुपये के कार्य सौंपे जा रहे हैं।
फॉरेस्ट स्पोर्ट्स मीट का टेंडर फिर दिल्ली को
ताज़ा मामला ऑल इंडिया फॉरेस्ट स्पोर्ट्स मीट (AIFSM) का है, जो 12 से 16 नवंबर तक आयोजित होनी है। आयोजन से जुड़े लगभग साढ़े तीन करोड़ रुपये के कार्य दिल्ली की एक कंपनी को सौंपे गए हैं। इससे पहले भी ऐसे कई उदाहरण सामने आ चुके हैं, जहां राज्य के बजाय बाहरी एजेंसियों को वरीयता दी गई।
इन्वेस्टर समिट और नेशनल गेम्स में भी दोहराई गई प्रवृत्ति
दून ट्रैवल ऑनर्स एसोसिएशन के प्रधान योगेश अग्रवाल और सचिव प्रवीन चावला का कहना है कि यह कोई पहला मामला नहीं है। इन्वेस्टर समिट के दौरान 80 करोड़ रुपये से अधिक का काम दिल्ली की कंपनी को दिया गया था।
वहीं, नेशनल गेम्स में 7 करोड़ से अधिक का काम मुंबई की कंपनी को सौंपा गया। इन सभी आयोजनों में स्थानीय सेवा प्रदाताओं और उद्यमियों को अवसर नहीं दिया गया, जबकि उनके पास न केवल संसाधन बल्कि अनुभव भी मौजूद था।
स्थानीय सेवाओं को पर्चेज प्रेफरेंस पॉलिसी में शामिल नहीं किया गया
प्रदेश सरकार की Purchase Preference Policy में जहां निर्माण, वस्त्र, खाद्य और अन्य क्षेत्रों को स्थान मिला है, वहीं सेवा क्षेत्र (Services Sector) को अभी तक नीति के दायरे में नहीं लाया गया है। उद्यमियों का कहना है कि यही सबसे बड़ा कारण है कि स्थानीय सेवा प्रदाताओं को अपने ही प्रदेश में काम करने का अवसर नहीं मिल पा रहा।
“आपदा के समय स्थानीय वाहनों का अधिग्रहण, पर काम में बाहरी कंपनियाँ”
इस विषय में उत्तराखंड टूर एंड ट्रैवल्स एसोसिएशन के पदाधिकारियों प्रधान योगेश अग्रवाल और सचिव प्रवीन चावला ने सरकार से सवाल किया है कि जब आपदा या आकस्मिक परिस्थितियों में वाहनों की आवश्यकता होती है, तब स्थानीय उद्यमियों के वाहन अधिग्रहित किए जाते हैं, लेकिन जब स्थायी कार्य देने की बात आती है, तब उन्हीं को दरकिनार कर बाहरी एजेंसियों को मौका दिया जाता है।
उन्होंने कहा कि हाल ही में प्रदेश ने आपदा की कठिन घड़ी झेली है। भारी वर्षा और भूस्खलन के चलते पर्यटन और परिवहन से जुड़े उद्यमियों को गहरा आर्थिक नुकसान हुआ है। अब जब आयोजन और कार्यक्रमों का दौर शुरू हुआ है, तो सरकार को स्थानीय व्यवसायों को प्राथमिकता देनी चाहिए, ताकि उनकी आर्थिक स्थिति सुधर सके।
“स्थानीय उद्यमी प्रदेश की GDP के हिस्सेदार, फिर भी उपेक्षित”
उद्यमियों का कहना है कि स्थानीय उद्यमी प्रदेश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, लेकिन जब काम देने की बात आती है, तो उन्हें नज़रअंदाज़ कर बाहरी कंपनियों को लाभ पहुँचा दिया जाता है। इससे न केवल राज्य के राजस्व को नुकसान होता है, बल्कि रोजगार के अवसर भी बाहर के लोगों तक सीमित रह जाते हैं।
“सरकार पुनर्विचार करे, टेंडर रद्द कर स्थानीय पात्रों को दे काम”
प्रधान योगेश अग्रवाल और सचिव प्रवीन चावला ने सरकार से आग्रह किया है कि वह इस पूरे मामले पर गंभीरता से विचार करे और या तो मौजूदा टेंडर को रद्द करे या स्थानीय पात्र सेवा प्रदाताओं को एल-वन दरों पर कार्य का अवसर प्रदान करे। उन्होंने कहा कि यदि यह प्रवृत्ति जारी रही, तो स्थानीय उद्यमियों में असंतोष और अविश्वास बढ़ता जाएगा।

