उत्तराखंड राज्य निर्माण में मातृशक्ति का योगदान किसी के छिपा नहीं है। इसी आन्दोलन में महिलाओं की भूमिका में सबसे महत्वपूर्ण कड़ी रही सुशीला बलूनी हमेशा के लिए इस दुनिया से विदा हो गई लेकिन उनकी यादें हमेशा उत्तराखंड राज्य आन्दोलन में महिलाओं के संघर्ष के रूप में रहेंगी। सुशीला पृथक उत्तराखण्ड राज्य की मांग के लिए आंदोलन की लड़ाई में कचहरी प्रागण में धरने पर बैठने वाली पहली महिला थी। उनके साथ रामपाल और गोविन्द राम ध्यानी भी थे। वह संयुक्त संघर्ष समिति की महिला अध्यक्ष के रूप में लगातार संघर्ष रत रही व राज्य आंदोलन के दौरान वह पूरे प्रदेश के भ्रमण व लखनऊ से लेकर दिल्ली तक संघर्षरत रही। सुशीला बलूनी का जन्म मूल रूप से उत्तरकाशी बडकोट के चक्र गांव में जिला उत्तरकाशी में था, वह मायके से डोभाल थी। उनका विवाह नन्दा दत्त बलूनी से जिला पौड़ी गढ़वाल में यमकेश्वर ब्लॉक के ग्राम वरगड़ी में हुआ था। सुशीला बलूनी लम्बे समय तक देहरादून बार एसोसिएशन की सदस्य भी रही।
वह जनता दल में रहते हुए 1979 में देहरादून नगर पालिका की नामित सभासद भी रही। एडवोकेट सुशीला बलूनी 1980 के समय से हेमवती नंदन बहुगुणा के पौड़ी गढ़वाल लोक सभा चुनाव से राजनीति में सक्रिय रहीं और बहुगुणा के प्रबल समर्थकों में से थीं। वह उत्तराखंड क्रांति दल में भी लम्बे समय तक रहीं।उसके उपरान्त वह उक्रांद में शामिल हो गई। बलूनी शराब बंदी से लेकर महिलाओं के उत्थान से लेकर राज्य आंदोलन के लिए जेल भरो , रेल रोको , धरना प्रदर्शन आदि में मुख्य भूमिका निभाई। राज्य आंदोलन की लड़ाई लड़ने वाली पहली महिला होने के नाते वे किसी भी आन्दोलन से पीछे नहीं झुकीं। सुशीला बलूनी अपने सामाजिक सफ़र के साथ ही राजनीति में भी किस्मत आजमा चुकी थी। सुशीला बलूनी ने मेयर और विधानसभा चुनाव में भी किस्मत आजमाई, मगर यहां उन्हें सफलता नहीं मिली। बाद में अलग राज्य उत्तराखंड बना तो सुशीला बलूनी राज्य आन्दोलनकारियों के प्रमुख चेहरों में से एक रहीं। उनकी छवि एक जुझारू, संघर्षशील और ईमानpa दार महिला नेत्री के रूप में रही। उन्हें उत्तराखंड में ताईजी के रूप में भी जाना जाता रहा है।