उत्तराखंड के पास 10 साल…युवा दिखाएं हुनर तो हो जाए कमाल, रोडमैप पर काम शुरू
जनसांख्यिकीय लाभांश एक ऐसी अवधि होती है जिसमें राज्य के पास अधिक संख्या में ऐसे लोग हैं जिन्हें कार्यशील आबादी में बदला जा सकता है और वे अर्थव्यवस्था में अपना योगदान दे सकते हैं
राज्य के 42 लाख से अधिक युवाओं के पास उत्तराखंड का भाग्य बदलने की ताकत है, लेकिन यह कमाल दिखाने के लिए राज्य के पास उतने वर्ष नहीं हैं जितने यूपी या बिहार राज्य के पास हैं। इसलिए राज्य के युवाओं को यह करिश्मा 10 वर्षों के भीतर दिखाना है। जनसांख्यिकीय लाभांश की इस स्थिति को अवसर में बदलने के लिए प्रदेश की धामी सरकार ने काम करना शुरू कर दिया है। नीति आयोग की बैठक में सीएम पुष्कर सिंह धामी राज्य में जनसांख्यिकीय लाभांश की स्थिति को अवसर में बदलने की अपनी सोच को साझा कर चुके हैं।
जनसांख्यिकीय लाभांश एक ऐसी अवधि होती है जिसमें राज्य के पास अधिक संख्या में ऐसे लोग हैं जिन्हें कार्यशील आबादी में बदला जा सकता है और वे अर्थव्यवस्था में अपना योगदान दे सकते हैं। राज्य के नियोजन विभाग के अनुमान के अनुसार, प्रदेश के पास यह अवसर 2035 तक है। यानी राज्य के पास युवाओं की एक बड़ी आबादी को दक्ष और कुशल श्रम में बदलने के लिए 10 साल हैं। इस अवधि में सरकार युवा आबादी को आजीविका से जोड़ने और उद्यमी बनाने में कामयाब हुई तो राज्य की अर्थव्यवस्था न सिर्फ संभलेगी बल्कि मजबूत भी होगी। विकसित होने के लिए इस लिहाज से पर्वतीय राज्य उत्तराखंड और हिमाचल के पास बराबर 10 वर्ष का समय है, वहीं दक्षिण भारतीय राज्य संतृप्ति की ओर हैं। इन राज्यों में कार्यशील आबादी दूसरे राज्यों से वहां पहुंच रही है। 2011 की जनगणना के अनुसार, राज्य में15 से 39 वर्ष की आयु वर्ग की आबादी 42,68,162 है।
चुनौती और अवसर दोनों
सरकार जनसांख्यिकी लाभांश की अवधि को एक सुनहरा अवसर मान रही है। विकसित उत्तराखंड के लिए विकास का जो रोडमैप बनाया जा रहा है, उसमें रोजगार को केंद्र में रखा गया है। अनुमान है कि अगले एक दशक में काम-धंधे की तलाश में ग्रामीण आबादी जिसमें बड़ी संख्या युवाओं की होगी, राज्य के शहरों और नगरों का रुख करेंगे। इसलिए महानगर, शहर, नगर और अर्द्धनगरीय क्षेत्रों में सरकार को इको सिस्टम तैयार करना होगा। प्रमुख सचिव नियोजन आर. मीनाक्षी सुंदरम कहते हैं, इस दिशा में सरकार ने काम शुरू कर दिया है। कौशल विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य, विनिर्माण, सूक्ष्म एवं लघु उद्योग, स्टार्ट अप, मेक इन इंडिया, सर्कुलर इकोनॉमी, नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्रों में निवेश बढ़ाकर युवा आबादी को कार्यशील बनाने के प्रभावी प्रयास होंगे। जानकारों का मानना है कि यदि ऐसा नहीं हो पाता है तो फिर अकार्यशील आबादी राज्य की अर्थव्यवस्था पर एक बड़ा दबाव और बोझ बन जाएगी और ये राज्य के लिए बड़ी चुनौती साबित हो सकता है।
2047 तक विकसित भारत में राज्य के योगदान के लिए जो योजनाएं और नीतियां बनाई जा रही हैं, वे पूरी तरह से स्वरोजगार और आजीविका पर आधारित हैं। राज्य आर्थिक विकास दर को समृद्धि में बदलने के लिए सरकार करीब 35 नीतियां बनाई हैं, इनमें पर्यटन, सेवा क्षेत्र, आयुष, स्टार्ट अप, कीवी, शहद, मिलेट, सोलर, सेब नीति के तहत सरकार ने योजनाओं को खास तौर पर इस ढंग से तैयार किया है कि जिनसे स्वरोजगार और आजीविका के अवसर बढ़ने के साथ राज्य की अर्थव्यवस्था का विस्तार होने की संभावना है