विभा पोखरियाल नौडियाल
अनैतिक आचरण ,जिसको हम लोग आधुनिकता का नाम दे रहे हैं वह दरअसल अय्याशी में परिवर्तित होता जा रहा है। हाथ में मोबाइल और किसी भी पराए व्यक्ति या , पराई स्त्री से पहले दोस्ती फिर अनैतिकता ,परिणाम स्वरूप बेलगाम पीढ़ी और वीभत्स सामाजिक माहौल। पुरुषों को मैं, ज्यादा दोषी नहीं मानती क्योकि मेरा मानना है पुरुष स्त्री के गर्भ से निकला हुआ एक कमजोर कृति है । बिना किसी महिला की अनुमति के अनैतिकता की हद पार नहीं कर सकता. यहां मैं, कई बच्चों के पर किए गए सर्वे के आधार पर कह रही हूं। संतान माता से प्रेरित होती है इसको कोई झुठला नहीं सकता। मैं उस गौरवशाली इतिहास की पक्षधर हूं जिसको तथाकथित बुद्धिजीवी और आधुनिकता के प्रणेता रूढ़िवाद नाम देते हैं।
माता-पिता द्वारा बेटियों को हर वक्त अपनी नजरों के सामने रखना और उचित समय आने पर ब्याह देना वाली परंपरा को हम गलत नहीं ठहरा सकते। क्योंकि जब मनमर्जी शुरू हो गई तो परिणाम स्वरूप क्या स्थिति बनी है आप देख ही रहे हैं। एक समय था जब बहू को अपने पति के साथ शहर जाने के लिए सास ससुर की अनुमति की नितांत आवश्यकता होती थी। बच्चे पैदा होते थे अपने गांव में, अपने शहर में ,अपने दादा दादी के सानिध्य में पढ़ते थे, संस्कार कूट-कूट कर भरे जाते थे , अब विवाह होते ही मैं, मेरा पति वाली जो संस्कृति निकली है। वह समाज को बर्बादी की ओर धकेल रही है घर परिवार से दूर निकल कर हाथ में एक महंगा मोबाइल फैशनेबल कपड़े, उल्टे सीधे वीडियो बनाकर अपलोड करना, और फिर आधुनिकता के नाम पर अपरिचित लोगों से चैटिंग करना ,मुलाकाते करना, माफ कीजिएगा कुछ बहनों को यह बात बहुत कड़वी लग सकती है लेकिन मैं आपकी प्रतिक्रिया लेने के लिए तैयार हूं। हजारों उदाहरण दे सकती हूं , मेरा गुस्सा इसलिए नहीं है कि मुझे कोई आपत्ति है। मेरी चिन्ता का विषय हैं हमारी संताने, या भावी पीढ़ी जो आप लोग पैदा करते हो वह समाज को किस दिशा में ले जा रहे हैं यह एक विचारणीय विषय है। जिस जननी को भारत भूमि में देवी के रूप में पूजा जाता था उसका स्वरूप बदल रहा है। सोशल मीडिया के भंवर जाल में फंसने पर भी महिलाएं नहीं समझ पा रही हैं कि, पीढियों का विनाश इसी प्रकार से हो रहा है । वह ऐसी काली कोठरी में ले जाकर अपनी औलाद को छोड़ देती है जहां उनके बच्चों के पास आत्महत्या के सिवाय कोई और रास्ता नहीं बचता । अगर आप इस प्रकार के विषयों पर सर्वे रिपोर्ट पढ़ें, जिसमें हर मिनट हो रहे बलात्कार, नशे के आदी, आत्महत्या, हत्याएं सब कुछ गलत आदतों के परिणाम स्वरूप उपजी हुई विकृतियां है के बारे में शोध और साक्ष्य मौजूद हैं।
दोष जाता है उन स्त्रियों को जिन्होंने अपने सुख, ऐश्वर्य और अय्याशी के चक्कर में अपने बच्चे के मानसिक विकास शारीरिक विकास और उसकी उचित शिक्षा दीक्षा का ध्यान नहीं रखा। आज भी अगर आप अपने आसपास उत्तरोत्तर विकास करते हुए परिवारों की ओर नजर डालें तो आप देखेंगे उसके मूल में उस घर की स्त्री का उच्च चरित्र का होना पाया जाएगा। कुछ लोग प्रश्न कर सकते हैं की, उच्च चरित्र की व्याख्या की जिये – फिर वो अलग डिबेट का विषय हो जायेगा ! हम विद्यालयों में देखते हैं कि किशोरावस्था में आते ही बच्चा गलत आदतों का शिकार हो जा रहा है जब इस पर केस स्टडी की जाती है तो पता चलता है कि, पिता दूर नौकरी करता है मां अपने बच्चे के साथ एक कमरे में एकाकी रहते हैं और और आश्चर्यजनक रूप से उन महिलाओं का अधिकतर ध्यान अय्याशी और फैशन पर ही होता है ।
आज शिक्षा का उद्देश्य सतत विकास माना जा रहा है लेकिन मैं कहती हूं कि अगर चारित्रिक विकास हो तो विकास सतत ही होगा। । हर बच्चा उत्कृष्ट तरीके से समाज में अपनी सेवाएं देगा ना तो पर्यावरण बचाने के लिए आपको अलग से प्रयास करने पड़ेंगे ,ना ही समाज को बचाने के लिए । विद्यालयों में आवश्यक रूप से माता पिता के लिए काउंसलिंग सेशन दिए जा सकते हैं। अभी भी समय है सुधर जाइए नहीं तो इतिहास में इस कालखंड को काले अक्षरों में लिखा जाएगा।