उत्तराखंड विषम भोगौलिक परिस्थितियों के लिए जाना जाता है यहाँ स्वास्थ्य सेवाएँ हमेशा से चुनौतीपूर्ण रही हैं । लेकिन कुछ हस्तियाँ ऐसी भी हैं जो आज से तीन दशक पहले विदेश में करोड़ों के सैलिरी पैकेज को दरकिनार कर उत्तराखंड की सेवा के लिए अपने प्रदेश वापस लौटे। टिहरी गढ़वाल के प्रतापनगर स्थित एक दूरस्त गांव शुक्री के रहने वाले डॉ. महेश कुड़ियाल Dr. Mahesh Kuriyal बीते तीन दशक से उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में बतौर न्यूरो सर्जन Neurosurgeon सेवा कर रहे हैं । डॉ. कुड़ियाल ने 1995 में केजीएमसी लखनऊ से एमबीबीएस और 1989 में एमएस किया। उन्होंने अपना एम सीएच (न्यूरोसर्जरी) संजय गाँधी मेडिकल कॉलेज लखनऊ से पूरा किया, जिसके बाद वे उत्तराखंड के पहले न्यूरोसर्जन के रूप से सेवा देने लगे । डॉ. कुड़ियाल ने न्यूरो सर्जन बनने का रास्ता जानबूझकर का चुना। 90 के दशक में उन्होंने यह महसूस किया कि न्यूरोसर्जन की कमी के कारण पहाड़ के लोग देश के बड़े- बड़े अस्पतालों का रुख करते हैं लेकिन उन्हें उचित उपचार नहीं मिल पाता, अपनी डिग्री हासिल करने के बाद, उन्होंने पूरे दिल से अपने समाज और प्रदेश की सेवा के लिए समर्पित कर दिया।
डॉ. कुड़ियाल को उनकी कार्यकुशलता को देखते हुए देश के बड़े-बड़े महानगरों के साथ ही विदेश में काम करने का अवसर मिला था, लेकिन उन्होंने अपनी इस दुर्लभ चिकित्सा विशेषता में अपनी सेवाएं देने के लिए उत्तराखंड का विकल्प चुना। डॉ महेश कुड़ियाल 1996 में जब विशेष प्रशिक्षण के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका में क्लीवलैंड क्लीनिक गए तो उन्हें नौकरी की पेशकश की गई लेकिन मना कर दिया और भारत वापस लौट आए क्योंकि वे उत्तराखंड के दूरदराज के इलाकों में न्यूरोलॉजिकल सेवाएं देना चाहते थे। वर्ष 1994 में, डॉ महेश कुड़ियाल ने मेरठ से शिमला तक लगभग 60 लाख की आबादी के लिए उत्तराखंड में पहली न्यूरो साइंस सेवाएं शुरू कीं। चूंकि न्यूरोलॉजिकल सुविधाएं केवल दिल्ली और चंडीगढ़ में उपलब्ध थीं, इसलिए सभी बीमार और गंभीर रोगियों को इन शहरों में रेफर करना पड़ता था और उनमें से आधे मरीजों की मौत रास्ते में ही हो जाती थी डॉ. कुड़ियाल द्वारा देहरादून में इन चिकित्सा सुविधाओं की स्थापना के बाद उत्तराखंड, हिमाचल और उत्तर प्रदेश से मरीजों का आना शुरू हो गया।
आज से तीन दशक पहले डॉ. महेश कुड़ियाल ने बिना किसी सहायता के समाज के सबसे गरीब तबकों को ये सेवाएं प्रदान करना जारी रखा। इनमें से अधिकांश रोगियों का इलाज नाममात्र के खर्च या मुफ्त में किया गया। उन्होंने देहरादून में एक व्यापक ट्रॉमा सेंटर की स्थापना की। उन्होंने 1994 के उत्तराखंड राज्य आंदोलन के पीड़ितों को मुफ्त उपचार भी उपलब्ध कराया। वह पिछले 3 दशक में उत्तराखंड में आई सभी आपदाओं के पीड़ितों के राहत और बचाव कार्य में भी सक्रियता से शामिल रहे हैं। एक चिकित्सक के रूप में उनकी लोकप्रियता ने उन्हें विभिन्न संगठनों के साथ जोड़ दिया है। वह ओएनजीसी, सैन्य अस्पताल और कई सरकारी संगठनों के पैनल में विजिटिंग डॉक्टर रहे हैं, वह समय-समय पर सेना को नि:शुल्क सेवाएं देते रहे हैं।
उन्होंने 2013 में सिर की चोटों को रोकने के लिए भारत में थिंक फर्स्ट प्रोग्राम शुरू करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। कोरोना महामारी के दौरान माननीय मुख्यमंत्री जी के अनुरोध पर डॉ. कुड़ियाल बिना किसी रूकावट के सभी जरूरतमंद मरीजों को अपनी सेवाएं देते रहे और कई बीमार मरीजों की जान बचाई। अगस्त के अंतिम सप्ताह में वे भी कोरोना से संक्रमित हो गए और उनका गहन इलाज करना पड़ा। समाज के लिए निरंतर काम में जुटे डॉ. महेश कुड़ियाल को देवभूमि डिस्कवर का सलाम ।